इलेक्ट्रीशियन थ्योरी 1000+ प्रश्न //ITI ELECTRICIAN इलेक्ट्रीशियन ट्रेड औजार से संबंधित महत्वपूर्ण इलेक्ट्रीशियन थ्योरी 1000+ प्रश्न

इलेक्ट्रीशियन थ्योरी
 सर्वप्रथम थेल्स नामक र्ैज्ञाशनक ने कहरर्ा पदाथव की छड़ को रेिम के साथ रगड़ कर स्थथर वर्धुत का आवर्ष्कार ककया था !
 र्ोल्टा नामक र्ैज्ञाशनक ने र्ोल्टेइक सैल का आवर्ष्कार कर चल वर्धुत का आवर्ष्कार ककया !
 फैराडे ने वर्धुत चुम्बकीय प्रेरण के द्वारा चल वर्धुत का आवर्ष्कार ककया !
 डी.सी.जशनत्र र् डी.सी.मोटर का आवर्ष्कार भी माइकल फैराडे ने ककया था !
 उजाव संरक्षण के शनयम के अनुसार उजाव को ना तो पैदा ककया जा सकता है और ना ही न􀆴 ककया जा सकता है एक रूप से दुसरे रूप में रूपान्तररत ककया जा सकता है !
>>
सुरक्षा एवं सावधानियााँ
 सुरक्षा शचन्हों की पालना करनी चाकहये | जब तक ककसी र्ैधुशतक कायव करने में अहताव प्राप्त न हो तो र्ह कायव नहीं करना चाकहए |
 S. I. माकाव युक्त इन्सुलेटीड (रोशधत ) औजारों का प्रयोग करना चाकहए |
 उच्च h.p क्षमता की मिीने,आल्टरनेटर , रांसफामवर तथा सककवट ब्रेकरों पर दोहरी अशथिंग करनी चाकहये |
 शिरोपरी लाइनों पर कायव करते समय सुरक्षा पेटी का प्रयोग करना चाकहए |
 शिरोपरी लाइनों पर कायव करते समय लाइन को चैन कर अथव कर देना चाकहए |
 ऊँचाई पर कायव करते समय सीकि (पेड़ी) का प्रयोग 45० से 60० के कोण पर करना चाकहए |
 फ्यूज सदैर् कला तार के श्रेणी क्रम में लगाना चाकहए |
 स्थर्च सदैर् कला तार के श्रेणी क्रम में लगाना चाकहए |
 र्ैधुशतक उपकरणों में लगी आग को बुझाने के शलए हेलोन अस्ननिामक यंत्र का प्रयोग करना चाकहए |
 फ्यूज बदलते समय मुख्य कुँजी ऑफ कर देनी चाकहए |
 फ्यूज बदलते समय हैर्ीड्यूटी P.V.C. के दथतानों का प्रयोग करना चाकहए |
 फिव से ककसी भार को उठाने के शलए या फिव पर रखने के शलए उंगशलयों र् हाथों की सुरक्षा के शलए र्ेज का प्रयोग करना चाकहए |
सुरक्षा निन्ह
 सुरक्षा शचन्ह चार प्रकार के होते हैं |
 1. शनषेधात्मक शचन्ह 2.सकारात्मक शचन्ह ३. सचेतक शचन्ह 4. सूचना शचन्ह |
 शनषेधात्मक शचन्ह की आकृशत र्ृताकार र् क्रोस पट्टी युक्त होती है |
 शनषेधात्मक शचन्ह का धरातल सफेद र् शचन्ह काले रंग के बने होते है |
 शनषेधात्मक शचन्ह कायविाला में कुछ कक्रया कलाप न करने की सलाह देता है जैसे धुम्रपान न करना , जलती आग पर पानी फेंकना तथा भाग कर सड़क क्रोस करना आकद |
 सकारात्मक शचन्ह की आकृशत र्ृताकार ,धरातल नीला र् शचन्ह सफेद रंग के होते हैं |
 सकारात्मक शचन्ह कायविाला में कुछ कक्रया कलाप करने की सलाह देता है | जैसे : दथताने पहनना , टॉप पहनन,माथक लगाना, सेफ्टी िूज पहनना आकद |
 सचेतक शचन्ह की आकृशत वत्रभुजाकार र् धरातल वपले रंग का होता है | शचन्ह काले रंग के होते हैं |
 सचेतक शचन्ह भय के प्रशत सचेत करता है |
 सुचना शचन्ह की आकृशत आयताकार , धरातल हरे रंग र् शचन्ह सफेद रंग के बने होते हैं |
 सूचना शचन्ह वर्िेष थथल, व्यवक्त ,कायविाला एर्ं अन्य सामग्री की सूचना देते हैं |
 मिुष्य को करंट लगिे का कारण _
 हमारा िरीर भी एक चालक की तरह होता है स्जससे की वर्धुत आसानी से गुजर सकती है | जब कोई करंट युक्त चालक हमारे िरीर से छु जाता है तो करंट अपना राथता िरीर से होते हुए अथव तक पूरा करता है | स्जस कारण मनुष्य को करंट लगता है |
 र्ैधुत आघात (Electric shock) की गम्भीरता िरीर में प्रर्ाकहत धारा थतर तथा सम्पकव की अर्शध पर शनभवर करता है | अथावत् वर्धुत धारा के पररमाण पर शनभवर करता है |
o आग एवं आग की श्रेणणयााँ
 आग लगने में मुख्यतः तीन कारक सहायक होते हैं | 1. ईंधन 2. ऊष्मा 3. ऑक्ट्सीजन
 आग का िमन : आग िमन की तीन वर्शधयाँ है |
 शचक्ट्करन : इस वर्शध के अंतगवत बालू रेत ,झाग वर्शध र् मोटे कम्बल द्वारा ऑक्ट्सीजन की आपूशतव बंद की जाती है |
 िीतलन : इस वर्शध के अंतगवत जल द्वारा ऊष्मा को कम ककया जाता है |
 ईंधन की आपूशतव कम करके : इस वर्शध के अंतगवत आस – पास का ईंधन हटा कदया जाता है |
 आग को मुख्यतः शनम्न श्रेस्णयों में र्गीकृत ककया गया है |
 ‘A’ श्रेणी : लकड़ी , घास ,र्स्त्र आकद में लगी आग | इस आग के िमन के शलए जल युक्त अस्ननिामक यंत्र का प्रयोग ककया जाता है |
 ‘B’ श्रेणी : ज्र्लनिील द्रर् र् ज्र्लनिील गैसों में लगी आग | जैसे केरोशसन ,पेरोल ,प्रोफेन गैस आकद | इस आग के िमन के शलए झागयुक्त अस्नन िामक यंत्र र् िुष्क पाउडर युक्त अस्ननिामक यंत्र प्रयोग ककया जाता है
 ‘ C’ श्रेणी : र्ैधुशतक उपकरणों में लगी आग C श्रेणी की आग कहलाती है | इस आग के िमन के शलए हेलान अस्ननिामक यंत्र अथावत् C.T.C. या C O2 अस्ननिामक यंत्र प्रयोग ककया जाता है |
 ‘D’ श्रेणी : धास्त्र्क पदाथों में लगी आग D श्रेणी की आग कहलाती है | इस आग के िमन के शलए C.T.C. या C O2 अस्ननिामक यंत्र प्रयोग ककया जाता है |

 ‘K’ श्रेणी : कुककंग आयल, र्सा (चबी ) आकद में लगी आग | आग के िमन केशलए झाग युक्त आस्ननिामक या िुष्क पाउडर युक्त अस्ननिामक यंत्र का प्रयोग ककया जाता है |
भारी समाि प्रहस्ति करिे की ववनधयााँ
 1.क्रेन एर्ं उत्बन्धन : इस वर्शध का प्रयोग कायविाला में उच्च क्षमता की मिीनों , रांसफामवरों को प्रहथतन करने के शलए प्रयोग होती है |
 2. चरखी वर्शध : कायविाला में समान को लोकडड र् अनलोकडड करने में प्रयोग होती है |
 यंत्र चाशलत प्लेटफामव : कायविाला में सहायक सामग्री को एक कायविाला से दूसरी कायविाला में पहुँचाने के शलए इस वर्शध का प्रयोग ककया जाता है |
 पट्टा एर्ं बेलन वर्शध : इस वर्शध द्वारा भारी समान को कुछ ही दुरी तक वर्थथावपत ककया जाता है | इस वर्शध का उपयोग हल्की ढ़लान में ककया जाता है |
 क्रोब्रार की छड़ द्वारा : इस वर्शध द्वारा छोटी मिीनों को एक थथान से दूसरे थथान तक बहुत कम दुरी में प्रहथतन ककया जाता है |
भारी समाि प्रहस्ति करते समय ध्याि रखिे योग्य बातें
 भारी समान उठाते समय या रखते समय उंगशलयों को चोट ग्रथत होने से बचाने के शलए र्ेज (लकड़ी का गुटका ) प्रयोग करना चाकहए |
 2. ककसी भी भारी समान को पीठ के बल झुककर नहीं उठाना चाकहए बस्ल्क उसे घुटनों के बल बैठ कर उठाना चाकहए
 नुकीले दार भारी समान को उठाते समय चमड़े के दथताने प्रयोग करने चाकहए |
 भारी समान को हाथ फैलाकर नहीं उठाना चाकहए |
 हल्के समान पर भारी समान को नहीं रखना चाकहए |
कृविम शवशि की ववनधयााँ
 1 शसल्र्ेथटर वर्शध : इस वर्शध के अन्तगवत रोगी को पीठ के बल शलटाया जाता है तथा रोगी के कन्धों के नीचे तककया लगाना चाकहए | प्राथशमक शचककत्सा देने र्ाले व्यवक्त को रोगी के शसर की तरफ घुटनों के बल बैठकर रोगी के दोनों हाथों को पीछे लाकर कुहशनयों को जमीन से थपिव करर्ातें हैं
 2 िेफर वर्शध : इस वर्शध में रोगी को ओंधे मुहँ शलटाया जाता है और बाहों को शसर की तरफ करके रखा जाता है | सहायक व्यवक्त को रोगी की पीठ की तरफ बैठकर दोनों हाथों से उसकी पसशलयों को दबाना चाकहए |
 3 मुहँ से मुहँ वर्शध : इस वर्शध के अन्तगवत रोगी के मुहँ में सहायक व्यवक्त द्वारा अपने मुहँ से हर्ा भरी जाती है | कृवत्रम िर्सन की सबसे उपयुक्त वर्शध है | रोगी के मुहँ में हर्ा भरते समय रोगी का मुहँ साफ़ करके रुमाल लगा लेना चाकहए | हर्ा के बाहर आते समय मुहँ हटा लेना चाकहए |
 मुहँ से नाक वर्शध : रोगी का मुहँ क्षशतग्रथत होने पर मुहँ से नाक वर्शध का प्रयोग करते हैं |
 सुरक्षात्मक एसैसररज
 जो सामग्री वर्धुत पररपथ को लघु पररपथ , अशत भाररत तथा भू – क्षरण की स्थथशत पर सुरक्षा प्रदान करती है र्ह सुरक्षात्मक सामग्री कहलाती है | जैसे कक M. C. B. , M.C.C.B. , E.L.C. B. , R.C.C.B. तथा फ्यूज इत्याकद |
 M.C.B. = ( Miniature Circuit Breaker ) M.C.B. का मुख्य उद्देश्य अशत भाररत धारा से पररपथ की सुरक्षा करना है |उच्च धारा पर Mcb भार को वर्संयोस्जत कर देती है | M.C. B. में मुख्यत तीन भाग होते हैं |
 थमवल करप यूशनट : यह अशत भाररत से सुरक्षा करती है | इसमें दो कद्वधास्त्र्क पशतयाँ होती है | मान लो ककसी पररपथ में से सामान्यत: 15 एम्पीयर की धारा प्रर्ाकहत हो रही है और 20 A का MCB लगा है यकद पररपथ धारा बिकर 25 एम्पीयर हो जाये तो थमवल पशत गमव होकर मुड़ जाती है तथा पररपथ को खोल देती है |
 मेननेकटक करप यूशनट : यह लघुपशथत से सुरक्षा करती है | इसमें एक कुंडली होती है जो अशधक धारा प्रर्ाह होने पर सकक्रय होकर पररपथ को खोल देती है | यह करप होने में 3 शमली सेकेण्ड का समय लेती है |
 ऑन ,ऑफ स्थर्च : यह पररपथ को जोड़ने र् तोड़ने का कायव करता है |
 M. C. B. के प्रकार : मेननेकटक करवपंग करंट के आधार पर शनम्न प्रकार की होती है |
 ‘B’ Type __ पूणव भार के 3 से 5 समय में करवपंग अथावत 10A शनधावररत M.C.B. 30 A से 50 A धारा के मध्य करप करेगी |
 ‘C’ Type __ पूणव भार धारा के 5 और 10 समय में करवपंग अथावत् 10A शनधावररत M.C.B. 50 A से 100 A धारा के मध्य करप करेगी |
 ‘D’ Type ___ पूणव भार धारा के 10 और 20 समय में करवपंग अथावत् 10A शनधावररत M.C.B. 100 A से 200 A धारा के मध्य करप करेगी |
 ‘K’ Type ___ पूणव भार धारा के 10 और 15 समय में करवपंग अथावत् 10A शनधावररत M.C.B. 100 A से 150 A धारा के मध्य करप करेगी |
 ‘Z’ Type ___ पूणव भार धारा के 2 और 3 समय में करवपंग अथावत् 10A शनधावररत M.C.B. 20 A से 30 A धारा के मध्य करप करेगी |
 फ्यूज की तुलिा में M.C.B. के लाभ
 M.C.B. र्ैधुशतक पररपथ की अशत भाररत र् लघु पशथत्त दोनों ही स्थथशतयों में थर्चाशलत होकर स्थर्च को तुरन्त ऑफ कर देती है जबकक इसकी तुलना में फ्यूज अशधक समय लेता है |
 पररपथ की लघुपशथत स्थथशत में M.C.B. को तुरन्त ऑपरेट ककया जा सकता है जबकक फ्यूज में समय लगता है
 बार – बार करवपंग के दौरान M. C .B पुनः प्रयोग ककया जा सकता है | जबकक फ्यूज को बार –बार ररपेयर करना पड़ता है |
 फ्यूज की तुलना में M.C.B. को धारण करना आसान है |
 M.C.B. का मूल्य फ्यूज की तुलना में अशधक होता है यह सबसे बड़ी हाशन है |
 M. C. B का उपयोग
 ‘Z’ Type ___ इस M.C.B. का उपयोग कंरोल सककवट , र्ोल्टेज कन्र्टवर और अधवचालक युवक्तयों में ककया जाता है |
 B ,C ,D Type ____ इनका उपयोग सामान्य भार के शलए ककया जाता है जैसे B प्रकार का घरेलू में C प्रकार का ओधौशगक क्षेत्र में तथा D प्रकार का बैटरीज चास्जिंग में X – Ray मिीन आकद में |
 ‘K’ Type ___ अत्यशधक रुक्ष धारा पर प्रारम्भ होने र्ाले उपकरणों जैसे मोटर रांसफामवर आकद पररपथ में इसका उपयोग ककया जाता है |
o M.C.C.B. (Moulded Case Circuit Breaker Concept)
 M.c.c.b. का मुख्य कायव होता है ककसी पररपथ को अशत भाररत धारा से बचाना |जब mccb में से अशधक धारा प्रर्ाकहत होती है तो यह सकक्रय होकर खुला पररपथ हो जाती है | M.C.C.B. शनस्ित धारा पर कायव करती है | ककसी कारण र्ि यकद पररपथ का लोड बढ़ जाये तो M.C.C.B. में थमवल करप थर्चाशलत होकर पररपथ को ऑफ कर देती है | यकद पररपथ लघुपशथत हो जाये तो मेननेकटक करप सकक्रय होकर M.C.C.B. करप कर देती है |
 M.C.C.B. की थमवल करप में वर्धुत धारा , समय के वर्लोमानुपाती होती है अथावत् वर्धुत धारा में र्ृवद्द होने पर M.C.C.B. करप होने में कम समय लेती है |
 R.C.C.B. (Residual Current Circuit Breaker ) : इसे E.L.C.B. भी कहते हैं |जब न्यूरल र् फेज में करंट बराबर नहीं होती है तो R.C.C.b iइसे रीड करके पररपथ को खोल देता है | MCB र् RCCB के मध्य मुख्य अन्तर यह की RCCB शमली एस्म्पयर धारा पर सकक्रय हो जाती है
Fuse
 ककसी पररपथ का र्ह कमजोर थथान जो अशधक धारा प्रर्ाह के कारण थर्ंय वपघलकर टूट जाए फ्यूज कहलाता है
 फ्यूज सदैर् फेज लाइन के श्रेणी क्रम में लगाया जाता है |
 फ्यूज तार शनमावण में सीसा र् कटन का शमश्रण प्रयोग ककया जाता है | शमश्रण अनुपात 37% सीसा र् 63% कटन होता है |

 फ्यूज तार उच्च प्रशतरोध र् शनम्न गलनांक र्ाला होता है |
 र्ह अशधकतम सुरस्क्षत धारा जो वबना ऊस्ष्मत ककये शनरन्तर फ्यूज में से प्रर्ाकहत होती है फ्यूज की धारा शनधावरण क्षमता कहलाती है |
 र्ह धारा स्जस पर फ्यूज र्ायर वपघल जाता है उसकी फ्यूस्जंग धारा कहलाती है |
 पररपथ में दोष होने पर फ्यूज द्वारा पररपथ को वर्क्षेकदत करने में लगा समय कक्रयान्त घटक कहलाता है |
 अल्पतम फ्यूस्जंग धारा और धारा शनधावरण का अनुपात फ्यूस्जंग घटक कहलाता है |
 पुनः तारण योनय फ्यूज का फ्यूस्जंग गुणक 1.4 से 1.7 तक पररर्शतवत होता है जो 2.0 तक हो सकता है |
 H.R.C. फ्यूज का फ्यूस्जंग गुणांक 1.1 होता है |
 अशत धारा से बचार् के शलए चयशनत फ्यूज का फ्यूस्जंग गुणांक 1.4 से अशधक नहीं होना चाकहए |
 अशधक धारा के शलये यथा सम्भर् एक धारक में समान्तर में छोटे फ्यूज तारों का प्रयोग करना चाकहए | व्यवक्तगत लकड़यों का शनधावरण योग की तुलना में र्ाथतवर्क शनधावरण कम हो जाता है |0.7 से 0.8 का एक समान्तरण गुणक का उपयोग व्यवक्त लकड़यों के शनधावरण योनय से गुणा कर र्ाथतवर्क धारा शनधावरण प्राप्त ककया जाता है |
 पुनः तारण योनय प्रकार फ्यूज 200 A तक र् कारतूस प्रकार फ्यूज 1250 A तक शनधावरण में होते हैं |
 पदाथव (Matter ) : स्जसका कोई शनस्ित भार होता है और जो थथान घेरता है उसे पदाथव कहते है !
 ठोस ( Solid) :स्जसका शनस्ित भार , आयतन र् आकार होता है र्ह ठोस कहलाता है ! सोना, लोहा , कोयला , पत्थर आकद !
 गैस (Gas ) : स्जसका शनस्ित भार तो होता है परन्तु शनस्ित आयतन र् आकार नहीं होता है गैस कहलाता है ! जैसे हाइड्रोजन , ऑक्ट्सीजन ,काबवन डाइ – ऑक्ट्साइड आकद !
 द्रर् (Liquid ) : स्जसका शनस्ित भार र् आयतन तो होता है परन्तु शनस्ित आकार नहीं होता है र्ह द्रर् कहलाता है ! जैसे – जल , पारा, गंधक का अम्ल आकद !
 अणु (Molecule ) : ककसी पदाथव का र्ह छोटे से छोटा कण स्जसमे उस पदाथव के सभी भौशतक एर्ं रासायशनक गुण वर्धमान हों और जो थर्तंत्र अर्थथा में वर्धमान रह सके उसे अणु कहते है !
 परमाणु ( Atom) : ककसी पदाथव का र्ह छोटे-से-छोटा कण जो रासायशनक कक्रयाओं में भाग ले सके अथर्ा रासायशनक कक्रयाओं के द्वारा पृथक ककया जा सके और थर्तंत्र अर्थथा में वर्धमान न रह सके उसे परमाणु कहते है !
 तत्र् ( Element) : केर्ल एक ही प्रकार के परमाणुओं से बने पदाथव तत्र् कहलाते है ! जैसे लोहा , काबवन आकद !
 यौशगक ( Compound) : दो या दो से अशधक प्रकार के परमाणुओं के रासायशनक संयोग से बने पदाथव यौशगक कहलाते है ! जैसे नौसादर , नमक ,जल आकद !
 शमश्रण( Mixture): दो या दो से अशधक प्रकार के पदाथों को एक शनस्ित अनुपात में भौशतकरूप में शमला देने पर बना पदाथव शमश्रण कहलाता है
 परमाणु संरचना ( Etomic Structure ) ; परमाणु का खोजकताव जॉन डेल्टन था ! परमाणु मुख्यतः प्रोटान , न्यूरॉन तथा इलेक्ट्रोन से बना होता है ! परमाणु की संरचना सौर मण्डल के समान होती है !
 1.नाशभक ( Nucleus) : परमाणु का केन्द्रीय सघन भाग नाशभक कहलाता है! इसमें प्रोटोन तथा न्यूरॉन अर्स्थथत होते है इसकी खोज रदरफोडव ने की थी !
 प्रोटान (Proton ) : प्रोटोन पर धन आर्ेि होता है ! इसका आर्ेि (+)1.6 X 10-19 कूलाम आर्ेि होता है!इसका द्रव्यमान 1.67 X 10-27Kg होता है ! प्रोटोन के खोज कताव रदरफोडव थे |
 इलेक्ट्रोन (Electron ) : यह सबसे हल्का कण होता है इस पर ऋण आर्ेि होता है ! इसका मान (-) 1.6 X10-19 कूलाम होता है ! इसका द्रव्यमान 9.107 X 10-31 Kg होता है| इसके खोज कताव जोजव जेम्स थोमसन थे ! इलेक्ट्रोन में दो प्रकार की घूणवन गशत होती है !
 चक्रण गशत ( Spin ) इलेक्ट्रोन का अपनी ही धुरी पर घूणवन करना चक्रण गशत कहलाती है !
 कक्षीय गशत ( Orbital ) : अपनी कक्षा में रहते हुए नाशभक के चारों और पररक्रमा करना कक्षीय गशत कहलाती है !
 न्यूरॉन (Neutron ) : यह उदासीन होता है इसका द्रव्यमान 1.67 X 10-27 Kg होता है ! खोज करता जेम्स चैस्ड्र्क था |
o परमाणु संरचना शनयम ( Law of atomic struture ) :
 प्रत्येक परमाणु ,सामान्य अर्थथा में आर्ेि रकहत होता है,क्ट्योंकक उसमें प्रोटोन्स तथा इलैक्ट्रोन्स की संख्या बराबर होती है | अत: परमाणु में कुल धन आर्ेि, कुल ऋण आर्ेि के तुल्य होता है |
 2. परमाणु में वर्धमान कक्षाओं को K ,L ,M ,N ,O ,P ,Q अक्षरों से व्यक्त ककया जाता है | इनमे से प्रथम 4 कक्षाओं में इलैक्ट्रोन्स का वर्तरण 2 n2 शनयम के अनुसार होता है |
 प्रथम कक्षा K में इलैक्ट्रोन्स = 2 × 12 = 2
 दुसरी कक्षा L में इलैक्ट्रोन्स = 2 × 22 = 8
 तीसरी कक्षा M में इलैक्ट्रोन्स = 2 × 32 = 18
 चौथी कक्षा N में इलैक्ट्रोन्स = 2 × 42 = 32
 हाइड्रोजन के परमाणु के नाशभक में केर्ल एक प्रोटोन होता है और उसके चारों ओर एक इलैक्ट्रोन पररक्रमागत होता है
 आक्ट्सीजन के परमाणु के नाशभक में 8 प्रोटोन्स तथा 8 न्यूरॉन्स होते है और नाशभक के चारों ओर दो कक्षाओं में क्रमि:2,6 इलैक्ट्रोन्स पररक्रमागत होते हैं
 सोकडयम के परमाणु के नाशभक में 11 प्रोटोन्स तथा 11 न्यूरॉन्स होते हैं और नाशभक के चारों ओर तीन कक्षाओं में क्रमि: 2, 8, 1 में इलैक्ट्रोन्स पररक्रमागत होते हैं|
 परमाणु क्रमांक ( Atomic Number ): ककसी तत्र् के एक परमाणु में वर्धमान इलैक्ट्रोन्स अथर्ा प्रोटोन्स की संख्या उसकी परमाणु संख्या कहलाती है |
 परमाणु भार ( Atomic Weight ) : ककसी तत्र् के एक परमाणु के नाशभक में वर्धमान प्रोटोन्स तथा न्यूरॉन्स की कुल संख्याओं के योग के बराबर उसका परमाणु भार या ‘द्रव्यमान संख्या’ कहलाती है |
 संयोजी इलैक्ट्रोन्स (Valence Electrons) : “ककसी तत्र् के परमाणु की अस्न्तम कक्षा में स्जतने इलैक्ट्रोन्स होते हैं र्े संयोजी इलैक्ट्रोन्स कहलाते है|
 मुक्त इलैक्ट्रोन्स ( Free Electrons ) :अशधकांि धातुओं की अस्न्तम कक्षा में उपस्थथत इलैक्ट्रोन्स स्जन्हें दुसरें परमाणुओं द्वारा आरोवपत थोड़े से आकषवण बल द्वारा ही धातु के परमाणु से वर्थथावपत ककया जा सकता है स्जनका नाशभक के प्रशत आकषवण बल का मान बहुत कम रह जाता है | मुक्त इलैक्ट्रोन्स कहलातें हैं |
 आयन (Ion ) : आर्ेि युक्त परमाणु या परमाणुओं के समूह को आयन कहतें हैं |
 धनायन (Cation ) : स्जस परमाणु में शनधावररत संख्या की अपेक्षा , इलैक्ट्रोन्स की संख्या कम हो जाती है, उसे धनायन कहतें हैं |
 ऋणायन (Anion ) : स्जस परमाणु में शनधावररत संख्या की अपेक्षा , इलैक्ट्रोन्स की संख्या अशधक हो जाती है, उसे ऋणायन कहतें हैं
 आयनीकरण ( Ionisation) : ‘परमाणुओं अथर्ा परमाणु – समूहों के आयन बनने की प्रकक्रया आयनीकरण कहलाती हैं |
 वर्धुत धारा (Electric Current ) : ककसी चालक में इलैक्ट्रोन्स के प्रर्ाह को वर्धुत धारा कहतें है अथावत जब ककसी चालक में मुक्त इलैक्ट्रोन् एक थथान से दुसरे थथान को प्रर्ाकहत होतें हैं तब इस इलैक्ट्रोन प्रर्ाह को वर्धुत धारा कहतें हैं इसकी इकाई एम्पीयर ( A) तथा प्रतीक I (आई)है
 वर्धुत धारा की कदिा : वर्धुत धारा की कदिा प्रारस्म्भक अर्धारणा के अनुसार धनात्मक (+Ve .) से ऋणात्मक (-Ve ) की ओर होती है | तथा इलेक्ट्रोशनक अर्धारणा के अनुसार वर्धुत धारा की कदिा ऋणात्मक (- Ve)से धनात्मक (+Ve .) होती है |
 वर्धुत धारा के प्रकार : वर्धुत धारा दो प्रकार की होती है |
 कद􀆴 धारा ( Direct Current ) : र्ह वर्धुत धारा है स्जसकी प्रर्ाह कदिा और मान शनयत रहता है |
 प्रत्यार्ृशत धारा ( Alternating Current ) : र्ह वर्धुत धारा है स्जसकी प्रर्ाह कदिा और मान एक शनयत दर पर पररर्शतवत होता रहता है |
 प्रशतरोध (Resistens ) : ककसी पदाथव का र्ह गुण , स्जसके कारण यह वर्धुत पररपथ में धारा प्रर्ाह के मागव में बाधा उत्पन्न करता है, प्रशतरोध कहलाता है | इसका प्रतीक (R ) र् ईकाई ओ􀆺 (Ω) है | बड़ी इकाइयाँ ककलो ओ􀆺 ( Ω) एर्ं मैगा ओ􀆺 ( Ω) तथा छोटी इकाइयाँ शमली ओ􀆺 ( Ω) र् माइक्रो ओ􀆺 (μΩ) है
 चालकता (Conductance ) : ककसी पदाथव का र्ह गुण जो वर्धुत धारा प्रर्ाह में सुगमता प्रदान करता है उसे चालकता कहतें है इसका प्रतीक G र्ह मात्रक साइमन ( S) होता हैं | चालकता प्रशतरोध के वर्लोमानुपाती होती है G = 1/R
 वर्शि􀆴 चालकता (Conductivity ) : वर्शि􀆴 प्रशतरोध का वर्लोम वर्शि􀆴 चालकता कहलाती है | इसका प्रतीक मात्रक साइमन/सेमी होता है 1 ρ
 वर्धुत र्ाहक बल (Electro Motive Force ) : ककसी चालक में से मुक्त इलैक्ट्रोन्स को प्रर्ाकहत करने र्ाला बल वर्धुत र्ाहक बल कहलाता है इसका प्रतीक E र् मात्रक र्ोल्ट ( V) होता है |
 वर्भर्ान्तर ( Potential Difrensh ) :जब ककसी चालक में से वर्धुत धारा प्रर्ाकहत होती है तो उसके शसरों के वर्भर्ों में कुछ अन्तर उत्पन्न हो जाता है स्जसे वर्भर्ान्तर कहतें है | इसका प्रतीक V और मात्रक र्ोल्ट (V ) होता है |
 वर्धुत वर्भर् ( Electric Potential ) : ककसी इकाई धनार्ेि को अनन्त से ककसी वबन्दु तक लाने में ककया गया कायव उस वबन्दु पर वर्धुत वर्भर् कहलाता है | वर्धुत वर्भर् की इकाई र्ोल्ट है |
 चालक (Conductor ) : र्ह पदाथव स्जनमें मुक्त इलैक्ट्रोन की बहुलता होती है अथावत स्जनमें से वर्धुत धारा प्रर्ाकहत हो सकती है चालक कहलाता है
 चालक के गुण : 1. चालक सथता र् सरलता से उपलध ध होना चाकहये | 2. चालक मजबूत , तन्य र् अघातर्ृध्य होना चाकहये 3. चालक का वर्शि􀆴 प्रशतरोध शनम्न होना चाकहये | 4. चालक र्ातार्रणीय प्रभार्ों से मुक्त होना चाकहये | 5. चालक सरलता से टांका लगाने योनय होना चाकहये |
 प्रमुख चालक : 1.चाँदी सबसे अच्छा चालक है | इसका प्रयोग ररले , कोंरेक्ट्टर आकद के संयोजक वबन्दु बनाने में ककया जाता है
 2. टंगथटंन का उपयोग बल्बों के कफलामेंट बनानें में ककया जाता है | टंगथटन थथायी चुम्बक शनमावण में भी प्रयोग ककया जाता है |
 3. नाइक्रोम का उपयोग हीकटंग एशलमेंट (उष्मक तत्र्) बनानें में ककया जाता है |
 4. तांबा एक अच्छा र्ेधुत चालक है स्जसका उपयोग र्ैधुत र्ायररंग,र्ैधुत र्ैष्टन, कदक्ट्पररर्तवक खंड र् वर्भक्त र्लय बनानें में ककया जाताहै
 5. डी. सी. मिीनों के ब्रुि बनानें में काबवन धातु का प्रयोग ककया जाता है |
 6. यूरेका धातु का प्रयोग तार लपेट प्रशतरोधक बनानें में ककया जाता है |
 7. मेंगनींन धातु का प्रयोग तार लपेट प्रशतरोधक बनानें में ककया जाता है |
 8. नाइक्रोम धातु में 80%शनककल र् 20%क्रोशमयम का शमश्रण होता है |
 9. यूरेका धातु में 40% शनककल र् 60% तांबा धातु का शमश्रण होता है |
 10. तांबे का गलनांक 1083 होता है र् आपेस्क्षक घनत्र् 8.93 होता है |
 11. एल्युशमशनयम का गलनांक 648 होता है र् आपेस्क्षक घनत्र् 2.7 होता है|
 12. सीसे का गलनांक 327 होता है र् आपेस्क्षक घनत्र् 11.3 होता है |
 13. कटन का गलनांक 232 होता है र् आपेस्क्षक घनत्र् 7.3 होता है |
 14. जथते का गलनांक 420 होता है |
 15. पीतल (Brass ), तांबा र् जथता का शमश्रण होता है | इसका प्रयोग र्ैधुत सहायक सामग्री के टशमवनल बनानें में ककया जाता है
 16. जथता धातु का उपयोग कैथोड इलैक्ट्रोड बनाने में ककया जाता है र् लौहे पर जंगरोधीपरत चढ़ाने में ककया जाता है
 17 कांसा धातु ताम्बा र् कटन धातु का शमश्रण होता है |
 अचालक : र्ह पदाथव स्जनमे मुक्त इलैक्ट्रोन नगण्य होते हैं अथावत वर्धुत धारा प्रर्ाह में बाधा उत्पन्न करतें है अचालक कहलातें है |
 अचालक के गुण : 1. अचालक सथता र् सरलता से उपलध ध होना चाकहये 2. अचालक मजबूत होना चाकहये
 3. अचालक की डाई-लैस्क्ट्रक थरेन्थ उच्च होनी चाकहये 4. अचालक मौसमी र्ातार्रणी प्रभार्ों से मुक्त होना चाकहये
 5. उच्च वर्शि􀆴 प्रशतरोध होना चाकहये |
 डाई-लैस्क्ट्रक थरेन्थ (परा र्ैधुत सामथ्यव) : ककसी अचालक की प्रशत mm र्ोल्टता सहन करने की क्षमता डाई-लैस्क्ट्रक थरेन्थ कहलाती है | डाई-लैस्क्ट्रक थरेन्थ को ककलो र्ोल्ट प्रशत शमलीमीटर (Kv /mm ) में व्यक्त ककया जाता है|
 प्रमुख अचालक : 1. िुष्क र्ायु : शिरोपरी लाइनों में दो चालकों के मध्य िुष्क हर्ा का इन्सुलेिन प्रयोग ककया जाता है |
 2. P.V.C. ( पोली वर्नायल क्ट्लोराइड )अचालक का प्रयोग केवबलों के इन्सुलेिन में ककया जाता है |
 3. V.I.R (व्ल्केनाइज्ड इंकडया रबर ) : अचालक का प्रयोग केवबलों के इन्सुलेिन में ककया जाता है |
 4. पोशसवलेन : शिरोपरी लाइनों के इन्सुलेटर बनानें में पोशसवलेन का प्रयोग ककया जाता है |
 5. अभ्रक (माइका) : दो कदक् पररर्तवक खंडों के मध्य रोधन के रूप में प्रयोग ककया जाता है |
 A.C.S.R का पूरा नाम एल्युशमशनयम कन्डक्ट्टर थटील रेनफोथडव (Aluminium Conductor Steel Rrinforced ) होता है |
 “ सामान्य तापमान पर वर्धुत का र्ह अशधकतम मान , जो ककसी तार में से सुरस्क्षत रूप से प्रर्ाकहत हो सके , उस तार की वर्धुत धारा र्हन क्षमता कहलाती है
 ककसी तार की वर्धुत धारा र्हन क्षमता उस तार की धातु के वर्शि􀆴 प्रशतरोध और उसकी मोटाई तथा थटैण्डसव की संख्या पर शनभवर करती है |अथावत् तार की मोटाई स्जतनी अशधक होती है उसकी करंट र्हन क्षमता उतनी ही अशधक होती है |
 “ ककसी तार के शलए वर्धुत धारा का र्ह न्यूनतम मान , स्जस पर र्ह वपघल कर टूट जाता है , फ्यूस्जंग वर्धुत धारा मान कहलाता है |
 तार की मोटाई स्जतनी अशधक होगी उसकी फ्यूस्जंग वर्धुत धारा का मान भी उतना ही अशधक होगा |
 ककसी केवबल की वर्धुत धारा र्हन क्षमता , उसमे प्रयोग ककये तारों की मोटाई (व्यास ) तथा तारों की संख्या आकद पर शनभवर करती है |
 केवबल की वर्धुत धारा र्हन क्षमता उसके कटाक्ष क्षेत्रफल के अशतररक्त शनम्न कारकों पर शनभवर करती है |
1. धातु की ककथम : प्रत्येक धातु का वर्शि􀆴 प्रशतरोध अलग अलग होता है |
2. अचालक की ककथम
3. केवबल थथापना वर्शध
4. पररपथ में फेजों की संख्या
5. चारों और का तापमान
6. कोरों की संख्या
 केवबल का रेकटंग फैक्ट्टर 40०C तापमान पर इकाई होता है |
 र्ोल्टेज ग्रेड के आधार पर केवबल का र्गीकरण
 शनम्न र्ोल्टेज केवबल 240 र्ोल्ट , मध्यम र्ोल्टेज केवबल 660 volt ,उच्च र्ोल्टेज केवबल 2.2 ककलो र्ोल्ट तथा अशत उच्च र्ोल्टेज केवबल से र्गीकृत होती है |
 ककट कैट फ्यूज “सामान्य” अशधक वर्धुत धारा सुरक्षा साधन है जो शनधावररत लोड करंट मान के 1.5 गुणा करंट मान पर लगातार 4 घंटे तक शनस्ित रूप से प्रचाशलत नहीं होता है |
 काकटवज फ्यूज एर्ं HRC फ्यूज ‘सीशमत अशधक वर्धुत धारा सुरक्षा साधन है जो शनधावररत करंट मान के 1.5 गुणा करंट मान पर 4 घंटे में शनस्ित रूप से प्रचाशलत हो जाता है अथावत् फ्यूज वपघलकर पररपथ को तोड़ देता है |
 तापमाि के आधार पर अिालकों का वगीकरण
 सोल्डररंग : दो समान या शभन्न धातुओं को उष्मीय प्रकक्रयाओं द्वारा ककसी तीसरी धातु की सहायता से जोड़ना सोल्डररंग कहलाता है | तीसरी धातु को कफलर धातु कहतें है |
 सोल्डर में सीसा र् कटन का शमश्रण होता है जो 40 : 60 का अनुपात होता है |
 एल्युशमशनयम चालकों के शलए ALCA – P सोल्डर का प्रयोग ककया जाता है |
 एल्युशमशनयम चालकों के शलए EYRE NO .7 फलक्ट्स का प्रयोग ककया जाता है |
 र्ैधुशतक कायों के शलए बेरोंजा,रेस्जन फलक्ट्स का प्रयोग ककया जाता है |
 सोल्डररंग कायों के शलए सोल्डररंग आयरन का प्रयोग ककया जाता है स्जसका शनधावरण र्ाट क्षमता से ककया जाता है |
 वर्धुत कमी सोल्डर ( 60%कटन र् 40% सीसा ) का कायावन्र्न ताप 185 होता है |
 एल्युशमशनयम चालकों में प्रयुक्त सोल्डर का कायावन्र्न ताप 170 - 215 होता है |
 सोल्डररंग आयरन की वबट तांबे की बनी होती है क्ट्योंकक ताम्बा ऊष्मा का अच्छा चालक होता है |
 सोल्डररंग आयरन की वबट को साफ़ करनें के शलए तार ब्रुि, थपंज पैड, रेती र् सेंड पेपर का प्रयोग ककया जाता है
 सोल्डररंग कायों में प्रयुक्त फ्लक्ट्स का शनम्न कायव होता है | 1. सोल्डररंग जोड़ को साफ़ करना 2. सोल्डर को वपघलने में सहायता प्रदान करना 3. सोल्डर को फैलनें में सहायक होना 4. जोड़ को ऑक्ट्सीकृत होनें से बचाना
 र्ृतीय कटाक्ष क्षेत्रफल र्ाला चालक तार (Wire ) कहलाता है |
 आर्रण युक्त तार केवबल कहलाता है |
 प्रमुख तार : 1.ACSR तार 2. यूरेका तार 3. नाइक्रोम तार 4. फ्यूज तार
 ACSR तार का पूणव नाम ;( एल्युशमशनयम कन्डक्ट्टर थटील रैन्फोसवड) इसका प्रयोग शिरोपरी लाइनों में ककया जाता है
 फ्यूज तार कटन र् सीसे का शमश्रण होता है स्जसका गलनांक कम होता है |
 शिरोपरी लाइनों र् र्ैधुत कायों में चालक की लम्बाई बढ़ाने के शलए शनम्न प्रकार के जोड़ लगायें जाते है |
 वपग टेल जोड़ : यह जोड़ उन स्थथशतयों में उपयुक्त होता है जहाँ पर चालकों पर कोई यांवत्रक प्रशतबल नहीं होता जैसे संशध बॉक्ट्स अथर्ा क्ट्न्युट उपसाधन बाक्ट्स |
 वर्र्ाकहत जोड़ : यह जोड़ उन थथानों में प्रयुक्त ककया जाता है जहाँ दृढ़ता के साथ उतम र्ैधुत चालकता र्ांशछत होती है |
 वब्रटाशनया जोड़ : शिरोपरी लाइनों में चालकों की लम्बाई बढ़ाने के शलए वब्रटाशनया जोड़ प्रयोग ककया जाता है |
 वब्रटाशनया जोड़ में दोनों चालकों के शसरों को 90® पर मोड़तें है तथा बन्धन तार को 180® पर लपेटते है |
 वब्रटाशनया जोड़ में दो चालकों के मध्य अशत व्यापन दूरी चालकों के व्यास का लगभग 20 से 25 गुना रखी जाती है |
 पस्िम संघ जोड़ का प्रयोग शिरोपरी लाइनों द्वारा सेर्ायी रेखाओं के लन्बर्त र्ैधुत ऊजाव के अन्त शनष्कािन के शलये ककया जाता है |
 प्रशतरोधक (Resistors ): जब ककसी पदाथव के टुकड़े अथर्ा उससे बने तार के एक अंि को एक शनस्ित प्रशतरोध मान प्रथतुत करने र्ाले पुजे का रूप दे कदया जाता है तो र्ह प्रशतरोधक कहलाता है | प्रशतरोधक चार प्रकार के होते हैं
 1.तार-कुंडशलत प्रशतरोधक ( - Wire Wound Resistors ): ये प्रशतरोधक यूरेका अथर्ा मैगशनन शमश्र धातु के महीन तार से बने होते हैं | इनकी वर्धुत धारा र्हन क्षमता काबवन प्रशतरोधकों की अपेक्षा अशधक होती है | ये दो प्रकार के होते है |
A. शनयत मान प्रशतरोधक : ये प्रशतरोधक 0.1 ओम से 50 ककलो ओम ,1 र्ाट से 50 र्ाट क्षमता में शनशमवत होतें है |
B. पररर्ती मान प्रशतरोधक : ये प्रशतरोधक 5 ओम से 5 ककलो ओम , 1 र्ाट से 50 र्ाट क्षमता में शनशमवत होते हैं |
तार-कुंडशलत प्रशतरोधक को गलनीय प्रशतरोधक भी कहते हैं |
 2. धातु कफल्म प्रशतरोधक : धातु कफल्म प्रशतरोधक 1 ओम से 10 मैगा ओम तक 1 में शमलते है धातु कफल्म प्रशतरोधक 120० से 175० तक कायव कर सकते है |
 3. काबवन कफल्म प्रशतरोधक : ये प्रशतरोधक 1 ओम से 10 मैगा ओम तथा 1 क्षमता में शमलते हैं | काबवन कफल्म प्रशतरोधक 85० से 155० तक कायव कर सकते हैं |
 4. काबवन संयोजन प्रशतरोधक : ये प्रशतरोधक काबवन अथर्ा ग्रेफाइट के महीन चूणव को ककसी उपयुक्त अचालक र्् बन्धक पदाथव के साथ शमलाकर तैयार ककए जाते हैं | ये दो प्रकार के होते हैं |
 शनयत मान काबवन प्रशतरोधक : ये प्रशतरोधक 1 ओम से 20 मैगा ओम तक प्रशतरोध तथा 1/8 र्ाट से 2 र्ाट क्षमता में शनशमवत होते हैं
 पररर्ती मान प्रशतरोधक : ये प्रशतरोधक 100 ओम से 5 मैगा ओम तक प्रशतरोध तथा 0.05 र्ाट से 0.25 र्ाट क्षमता में शनशमवत होते हैं
 प्रशतरोधक का शनकदवव􀆴करण : प्रशतरोधकों को सामान्यत:चार महत्र्पूणव पैरामीटर से शनकदव􀆴 ककया जाता है |
o प्रशतरोधक का प्रकार
o प्रशतरोधक का अशभकहत मान ओ􀆺,ककलो ओ􀆺 ,मैगाओ􀆺 में
o प्रशतित में प्रशतरोधक मान की सहन सीमा (टालरेंस)
o घटकों की भारण क्षमता र्ाट में
 प्रशतरोधकों को उनके कायव के आधार पर दो र्गों में बांटा गया है |
 स्थथर प्रशतरोधक : र्े प्रशतरोधक स्जनका अशभकहत मान स्थथर रहता है |
 पररर्तीय प्रशतरोधक : र्े प्रशतरोधक स्जनमे सपी सम्पकव की सहायता से प्रशतरोध मान को वर्शभन्न थतरों पर सेट ककया जा सकता है | इन्हें वर्भर् मापी कहतें हैं | कतवनी ( Timmer) वर्भर्मापी या प्रशतरोधकों को एक छोटे पेंचकस की सहायता से समायोस्जत ककया जाता है
 प्रशतरोध ताप,र्ोल्टता,प्रकाि पर शनभवर करता है : वर्िेष प्रकार के प्रशतरोधक स्जनका प्रशतरोध ताप,र्ोल्टता,तथा प्रकाि के साथ पररर्तवनीय होता है
 प्रशतरोधक (ताप र्धवक प्रशतरोध )(सेंशसथटर) : PTC प्रशतरोधक (धनात्मक ताप गुणांक प्रशतरोधक )में जैसे-जैसे ताप बढ़ता है तो प्रशतरोध रेखीय रूप से बढ़ता है |
 प्रशतरोधक (तापी प्रशतरोधक) (थेशमवथटर) : NTC प्रशतरोधक (ऋणात्मक ताप गुणांक प्रशतरोधक) की स्थथशत में जैसे ताप बढ़ता है तो प्रशतरोध का मान रेखीय रूप से घटता है |
 प्रशतरोधक (चर प्रशतरोधक) (र्ैरररथटर) ( Voltage Depeneded Resistor ): VDR प्रशतरोधक में र्ोल्टता बढ़ने पर प्रशतरोध रेखीय रूप से घटता है | VDR का उपयोग र्ोल्टता स्थथरीकरण, आकव िमन तथा अशत र्ोल्टता रक्षण में उपयोग ककया जाता है |
 प्रशतरोधक (प्रकाि आशश्रत प्रशतरोधक)( Light Dependent Resistor ) : LDR प्रशतरोधक में प्रदीशप्त की तीव्रता बढ़ने के साथ प्रशतरोध कम होता है | प्रकाि की तीव्रता मापने के शलए उपयोग ककए जाते हैं |
 काबवन प्रशतरोधकों का प्रशतरोध मान अंकन : प्रशतरोध मान अंकन की दो वर्शधयाँ है | 1. बैण्ड टाइप 2. बॉडी टाइप
 बैण्ड टाइप : पहली पंवक्त का रंग प्रशतरोध मान के पहले अंक को,दूसरी पंवक्त का रंग प्रशतरोध मान के दूसरे अंक को, तीसरी पंवक्त का रंग गुणक को तथा चौथी पंवक्त का रंग सहन सीमा को व्यक्त करता है |
 बॉडी टाइप : प्रशतरोधक की बॉडी का रंग प्रशतरोध मान के पहले अंक को,शसरे का रंग दूसरे अंक को,वबन्दी का रंग गुणक को तथा आयताकार शचन्ह का रंग प्रशतित सहन सीमा को व्यक्त करता है |
 रंग संकेत ताशलका : 1.प्रथम पंवक्त का रंग काला , सुनहरी र् चाँदनी नहीं होता है |
 2.दूसरी पंवक्त का रंग सुनहरी र् चाँदनी नहीं होता है |
 प्रशतरोध के मान के शलए अक्षर तथा अंककीय संख्या कोड : इस प्रणाली में अक्षर तथा संख्या का उपयोग ककया जाता है | अक्षर R , K तथा M को , ओ􀆺 में व्यक्त प्रशतरोध के मान के गुणक के शलए उपयोग ककया जाता है | प्रशतित में सामंजथयपूणव टालरेंस के शलए प्रशतरोध के टालरेंस को संकेत करने के शलए शनम्नशलस्खत अक्षर उपयोग ककये जातें हैं | 5% = , 10% = , 20% =
o रंगो के क्रमिः नाम याद रखने के शलए शनम्न सूत्र का प्रयोग कर सकते हैं
o बी बी रॉय गो टू बोम्बे र्ाया गोर्ा वर्द गोल्डन शसल्र्र
 रंग संकेत ताशलका :
रंग
पहली पंवक्त
दूसरी पंवक्त
तीसरी पंवक्त
चौथी पंवक्त
काला (B )
0
0
1
------
भूरा ( B)
1
1
10
1%
लाल ( R)
2
2
102
2%
नारंगी (O )
3
3
103
3%
पीला (Y )
4
4
104
4%
हरा (G )
5
5
105
नीला ( B)
6
6
106
बैंगनी ( V)
7
7
-
सलेटी ( G)
8
8
-
सफेद (W )
9
9
-
सुनहरी ( G)
-
-
0.1
5%
चाँदनी (S )
-
-
0.01
10%
रंगहीन (NO COLOUR )
-
-
-
20%
1. भूरा ,काला ,सुनहरी ,सुनहरी = =
2. 1.5Ω 10% 1 को अक्षर कोड में =
3. लाल ,लाल , काला ,लाल =
T.C.C. इलेक्ट्रीशियन थ्योरी T.C.C.
15 TARGET COACHING CENTER
WARD NO.4 HANUMAN KHEJRI MANDIOR ROAD SURATGARH 335804 (RAJ.)
4. 330Ω 20% 0.5 को अक्षर कोड में =
5. लाल , बैंगनी , नारंगी ,चाँदनी =
6. 2.7 Ω 5% 2 को अक्षर कोड में =
7. पीला , बैंगनी , पीला , सुनहरी =
8. 1 Ω 20% 1 को अक्षर कोड में =
9. भूरा , काला , हरा ,सुनहरी =
10. KR 22 1 W को अंकीय कोड में =
11. भूरा , काला , नीला , चाँदनी =
12. K 1R 8 1W को अंकीय कोड में =
13. .पीला , लाल , नारंगी , सुनहरी =
14. J 2 K7 1W को अंकीय कोड में =
15. सलेटी , नीला , चाँदनी , चाँदनी =
16. KM 2 1W को अंकीय कोड में =
17. सफेद , काला ,हरा , सुनहरी =
18. K 1 M5 1W को अंकीय कोड में =
औजार
 संयुक्त प्लायर :
 संयुक्त प्लायर का आकार उसकी पुरी लम्बाई से मापा जाता है | संयुक्त प्लायर का उपयोग ककसी र्ायर को छीलने , काटने, पकड़ने , खींचने र् मरोड़ने के शलए ककया जाता है | इसका प्रयोग थटील र्ायर काटने र् हैमर की तरह ठोकने के शलए नहीं करना चाकहए |
 पेिकस :
 पेचकस का साइज वबट की चौड़ाई र् िैंक की लम्बाई से मापा जाता है | पेचकस की िैंक प्राय: काबवन थटील या एलाय थटील की बनी होती है |तारा िीषव थर्टेवपंग पेंच के शलए कफशलप्स पेचकस प्रयोग होता है | पेचकस का प्रयोग छेनी की तरह नहीं करना चाकहए |
 फेज टेस्टर :
 फेज टेथटर का प्रयोग फेज की उपस्थथशत जांचने के शलए ककया जाता है | इसकी र्ोल्टता शनधावरण 500 र्ोल्ट होती है | फेज टेथटर द्वारा फेज जांचते समय अंगुली केप को छुनी चाकहए |
 टेस्ट लेम्प :
 A.C. लाइन के फेज , न्यूरल तथा अथव तारों की पहचान करने के शलए टेथट लेम्प का प्रयोग ककया जाता है
 पोकर :
 इसे सुम्मी या ब्राडल कहते हैं | लकड़ी की कफकटंनस में पेंच कसने से पूर्व पेंच के शलए छोटा खांचा बनाने के शलए प्रयोग होता है |
 िोज प्लायर :
 पतले तारों को पकड़ने ,ऐंठने , तारों की घुंडी बनाने तथा छोटे आकार के नटों को कसने तथा खोलने के शलए नोज प्लायर का प्रयोग होता है |
 इलैणरिनशयि िाकू :
 इसका साइज इसकी पूरी लम्बाई से मापा जाता है | इलैस्क्ट्रशियन प्राय 80 mm र्ाले चाकू का प्रयोग करता है | इसमें दो फलक होते हैं एक धारदार र् दूसरा धार रकहत | धारदार फलक इन्सुलेिन शछलने र् धार रकहत फलक इनैमल्ड साफ़ करने के शलए प्रयोग होता है |
 रेती (File) :
 रेती एक प्रकार का ककटंग टूल है स्जसका प्रयोग जॉब से अनार्श्यक धातु को हटाने के शलए ककया जाता है |
 रेती प्राय: उच्च काबवनथटील , काथट थटील से बनाई जाती है |
 रेशतयों को लम्बाई , आकार , कट र् ग्रेड के आधार पर वर्शि􀆴त ककया जाता है |
 रेती की लम्बाई कटप से हील तक की लम्बाई से मापी जाती है |
 कठोर धातु को रेतने के शलए डबल कट रेती का प्रयोग ककया जाता है एकल कट रेती में एक कदिा में दांतों के कट 600 कोण पर होते हैं|
 डबल कट रेती में प्रथम पंवक्त 500 कोण पर तथा दूसरी पंवक्त 700 कोण पर होती है |
 उद्धक्रन्त रेती (रेस्प कट फाइल ) केर्ल अद्दव गोलाकार आकृशत में शमलती है इसका प्रयोग लकड़ी , रबर , टायर ट्यूब आकद को रेतने के शलए ककया जाता है |
o अनभयांविक स्टील रूल :
 यह स्थप्रंग थटील का बना होता है | इसका प्रयोग प्रत्यक्ष माप लेने के शलए ककया जाता है| इसका अल्पतम माप 0.5mmहोता है |
o हैरसा :
 यह ककटंग प्रकार का औजार है |
 हैक्ट्सा फ्रेम तीन प्रकार के होते हैं 1. बोल्ड फ्रेम 2. समंजन फ्रेम 3. समंजन फ्रेम नशलका प्रकार |
 हैक्ट्सा ध लेड के दोनों शसरों पर बने शछद्र ध लेड को फ्रेम के साथ स्थथर करने केशलए होते हैं |
 हैक्ट्सा ध लेड का साइज उसके दोनों वपन होल्स के सेंटर से सेंटर की दूरी से शलया जाता है |
 हैक्ट्सा ध लेड प्राय: हाई काबवन थटील ,लो एलाय थटील या हाई थपीड थटील से बनाये जाते हैं |
 हैक्ट्साइंग करते समय हैक्ट्सा की औसतन चाल 40 से 50 थरोक प्रशत शमनट होनी चाकहए |
 हैक्ट्सा ध लेड को उसकी लम्बाई ,चौड़ाई ,मोटाई और वपच के अनुसार शनकदव􀆴 ककया जाता है |
 प्लास्थटक ,नमव एल्युशमशनयम या ताम्बा की छड़ों को काटने के शलए 14 दांत प्रशत 25 mm हैक्ट्सा ध लेड का प्रयोग ककया जाता है |
 दृढ़ थटील को काटने के शलए 24 दांत प्रशत 25 mm हैक्ट्सा ध लेड का प्रयोग ककया जाता है |
 पतले दीर्ान सेक्ट्िन तथा पानी के पाइप को काटने के शलए 32 दांत प्रशत 25 mm हैक्ट्सा ध लेड का प्रयोग ककया जाता है |
 इंजीनियररंग नशकंजा :
 इंजीशनयररंग शिकंजे का साइज जबड़े की चौड़ाई से ककया जाता है |
 बेंि वाइस का प्रयोग जॉब को मजबुती से पकड़ने के शलए ककया जाता है |
 इंजीशनयररंग शिकंजे में दो प्रकार के जबड़े होते है एक स्थथर रहता है तथा दूसरा घूमने योनय होता है |
 इंजीशनयररंग शिकंजे से ककसी जॉब की कफशनशिंग सतह को बचाने के शलए नशकंजा रलैम्प का प्रयोग ककया जाता है |
 छोटी जॉब को पकड़ने के शलए हैण्ड वाइस का प्रयोग ककया जाता है |
 घड़ी साज द्वारा वपि वाइस का प्रयोग ककया जाता है |
 ककसी बेलनाकार जॉब या पाइप को पकड़ने के शलए पाइप वाइस का प्रयोग ककया जाता है |
o स्क्राइबर ( खरोंिक ):
 यह प्राय: हाई काबवन थटील से बना होता है | इसका प्रयोग धास्त्र्क च􀆧रों में माककिंग करने र् लाइने खींचने में ककया जाता है
ववभाजक (डडवाइडर ) :
 यह एक अप्रत्यक्ष प्रकार का माककिंग टूल है | इसका साइज ररर्ट या वपर्ट वपन के सेंटर से प्र्ाइंट तक की दूरी से शलया जाता है |
पंि :
 पंच प्राय: हाई काबवन थटील के बनाये जाते हैं | पंच का साइज इसकी पूरी लम्बाई और व्यास से शलया जाता है |
 डॉट पंि का प्र्ाइंट कोण 600 होता है इसका प्रयोग माककिंग करने के पिात लाइनों पर डॉट लगा कर उन्हें थथायी करने के शलए ककया जाता है |
 केन्र निद्र्क ( सेंटर पंि ) का प्र्ाइंट कोण 900 होता है | इसका मुख्य प्रयोग धास्त्र्क च􀆧र में कड्रल होल करने के शलए उसके सेंटर प्र्ाइंट की पंशचंग करने के शलए ककआ जाता है |
 वप्रक पंि का प्र्ाइंट कोण 300 होता है |
 ठोस शीतल पंि का उपयोग धास्त्र्क च􀆧रों में छोटे शछद्र करने के शलए ककया जाता है |
 खोखला शीतल पंि का उपयोग लघु गेज की च􀆧रों में छेद बनाने के शलए ककया जाता है
 माइक्रोमापी :
 अशत सूक्ष्म माप मापने र्ाला औजार है |यह वब्रकटि प्रणाली में 1/1000 इंच या 0.001 इंच और मीकरक प्रणाली में 1/100 mm या 0.01mm की िुद्दता में माप देता है |
 धास्त्र्क च􀆧र या र्ायर का बाह्म व्यास मापने के शलए बाह्म माइक्रो मीटर का प्रयोग ककया जाता है | आंतररक माप लेने के शलए इनसाइड माइक्रोमीटर का प्रयोग ककया जाता है |गहराई मापने के शलए डैप्थ माइक्रोमीटर का प्रयोग ककया जाता है
 माइक्रोमीटर नट और बोल्ट या लीड और वपच के शसद्दांत पर कायव करता है |
 1/1000 mm या 0.001 mm को एक माइक्रोन कहतें हैं | यह माप मीकरक र्शनवयर माइक्रोमीटर से मापा जाता है
 माइक्रोमीटर का फ्रेम अंग्रेजी के “C’ अक्षर के आकार का होता है | यह इन्र्ार थटील , काथट आयरन और फोज्डव थटील का बना होता है |
 र्शनवयर केशलपर का अल्पतम माप 0.02 mm है |
o हैमर (हथौड़ा ):
 हथौड़ा एक हथत टूल है जो वर्शभन्न आघातों जैसे पंशचंग,मोड़ना,सीधा करना ,तोड़ना,फोस्जिंग करना और ररर्ेकटंग के शलए प्रयुक्त होता है | हथौड़े का आकार भार (र्जन ) र् वपन की आकृशत से ककया जाता है |
 हथौड़े के फेस र् वपन भागों को कठोरीकृत ककया जाता है |

 बॉल वपि हैमर का फेस चपटा होता है और वपन बॉल के

No comments:

Post a Comment